Activity

Education

शिक्षा मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाती है। इसलिए शिक्षा समाज की प्रथम आवश्यकता है। भारत के गुरुकुलों में ऋषियों-मुनियों ने भारत के स्व (selfhood) के विचार-दर्शन और एवं उसकी पूर्ति के लिए उन्नत शिक्षा प्रणाली की स्थापना की है। समाज हित में व्यक्ति निर्माण, शिक्षा का केन्द्रीयभाव रहा है। भारत की उज्जवल विरासत, परम्पराएं, संस्कृति के प्रति निष्ठा रखने वाली शिक्षा सभी को मिले, इस उद्देश्य से सम्पूर्ण भारत के शहरों की पिछड़ी बस्तिओं, सुदूरवर्ती वनांचलों में तथा शिक्षा से वंचित ग्रामीण क्षेत्र के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा भारती के माध्यम से शिक्षा के अवसर सर्व-सुलभ किये हैं। शिक्षा आयाम के प्रमुख प्रकल्प जिनका स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हंतु प्राथमिकता से संचालन किया जा रहा है।

6 से 14 वर्ष आयु के बालक-बालिकाओं को अपनी संस्कृति तथा भारत के महापुरुषों के श्रेष्ठ जीवन का परिचय कराते हुए उनके जीवन निर्माण के उद्देश्य से बाल संस्कार केन्द्र चलाये जाते हैं। ऐसे केन्द्र सप्ताह में एक बार अथवा प्रतिदिन भी बस्ती में 20 से 40 बालक- बालिकाओं के एकत्रीकरण के साथ चलते हैं।

Health

सामाजिक सुहृदय की पहली कामना ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः’ है। जहां स्वयंसेवक रहते हैं वहां आस-पास के स्वास्थ्य पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराते हैं। नर सेवा नारायण सेवा के भाव से स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रकल्प एवं जागरण गतिविधियों का आयोजन व्यवस्थापन करते हैं। इस कार्य को अधिक प्रभावकारी एवं परिणामकारी बनाने के लिए पंजीकृत संस्थाओं के माध्यम से चलित चिकित्सालय, चिकित्सा केन्द्र, अस्पताल आदि का संचालन किया जाता है। समय-समय पर स्वास्थ्य जांच शिविर एवं स्वास्थ्य यात्राओं का आयोजन भी किया जाता है।

Self Reliance

वही व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र स्वाभिमान के साथ खड़ा हो सकता जो आर्थिक रूप से स्वावलम्बी हो। इस संदर्भ में हम भारत के अर्थव्यवस्था की बात करें तो हम उत्तरोत्तर प्रगति कर विश्व पटल पर चतुर्थ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या 15 से 60 वर्ष कार्यशील आयु वर्ग की है। यह जनसंख्या अगर सम्पूर्ण रोजगार युक्त हो जाए तो हमारी अर्थव्यवस्था 3.5 ट्रिलियन से बढ़कर 40 ट्रिलियन हो सकती है। ज्ञात रहे अमेरिका की अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन ही है। रोजगार के अवसरों को तलाशना भी होगा और तराशना भी होगा। हमारे सेवा संगठन विकास की मुख्य धारा से पिछड़ चुके वर्ग के लिए स्वावलम्बन आयाम के माध्यम से रोजगारन्मुख विविध सेवा केन्द्रों का संचालन कर रहे हैं।

Jagran

बाह्य विविधता के बावजूद अंतर्निहित एकता हिन्दू जीवन शैली की नींव रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के समय से ही अपने स्वयंसेवकों में, जाति, प्रांत, सामाजिक स्थिति आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के, सामाजिक समरसता के मूल्य को विकसित करता रहा है। समरसता का यही सिद्धान्त सेवा भारती और अन्य सभी मातृ संगठनों का केन्द्रीय भाव रहा है। इसलिए समाज के सभी आयु समूहों के लिए समरसता निर्माण करने वाले सेवा कार्य प्रारम्भ किये हैं।

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